निशा कोठारी
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माहिये
बस राज़ ज़रा सा है
राधा है पनघट
मोहन मन प्यासा है
भीतर रुत रखो सही
बाहर तो पल पल
दुनिया ये बदल रही
मज़बूत इरादे हों
मंज़िल पाने के
खुद से कुछ वादे हों
बस प्यार लुटाये जा
याद रखे दुनिया
धुन ऐसी गाये जा
इक डोर बँधे हम सब
कोई अलग नहीं
जाने, जानेंगे कब
दरिया है बहना है
जब तक पार लगें
मौजों में रहना है
अपनी ताकत बन जा
किस्मत के आगे
पर्वत बन कर तन जा
यहाँ कुछ न तेरा है
बंजारा तन मन
दुनिया बस डेरा है
मत उलझो रिश्तों में
रिश्तों की कीमत
चुकती है किश्तों में
बचपन के यार मिले
मस्त हुआ मौसम
दिल सबके खिले खिले
दिन वो जो बीत गये
होठों को देकर
सुधियों के गीत गये १ दिसंबर २०१८ |