अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

निशा कोठारी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  माहिये

बस राज़ ज़रा सा है
राधा है पनघट
मोहन मन प्यासा है

भीतर रुत रखो सही
बाहर तो पल पल
दुनिया ये बदल रही

मज़बूत इरादे हों
मंज़िल पाने के
खुद से कुछ वादे हों

बस प्यार लुटाये जा
याद रखे दुनिया
धुन ऐसी गाये जा

इक डोर बँधे हम सब
कोई अलग नहीं
जाने, जानेंगे कब

दरिया है बहना है
जब तक पार लगें
मौजों में रहना है

अपनी ताकत बन जा
किस्मत के आगे
पर्वत बन कर तन जा

यहाँ कुछ न तेरा है
बंजारा तन मन
दुनिया बस डेरा है

मत उलझो रिश्तों में
रिश्तों की कीमत
चुकती है किश्तों में

बचपन के यार मिले
मस्त हुआ मौसम
दिल सबके खिले खिले

दिन वो जो बीत गये
होठों को देकर
सुधियों के गीत गये

१ दिसंबर २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter