|
शुभ दिन आया
और हवाओं में रँग बिखरे
शोख-सजीले कैसे क्वाँरे
.
आओ, सजनी, देखें चलकर
इन्द्रधनुष निकला है छत पर
.
शुभ दिन आया
रात हुई बरखा में भीगे
फूल लग रहे कितने प्यारे
.
ऋतु-नहाई है धूप लॉन पर
चम्पा से है ओस रही झर
.
शुभ दिन आया
बाँचें हम भी, रंगपर्व के
भीतर जो इतिहास हमारे
.
पत्तों पर गुलाल बिखराकर
सुबह लिख रही ढाई आखर
.
शुभ दिन आया
बौराई है अमराई भी
कोयल ने ऋतुमंत्र उचारे
.
शोर हो रहा गली में उधर
चुप क्यों रहता अपना यह घर
.
शुभ दिन आया
गली-गली में टेसू महका
भंग पिये निकले हुरियारे
.
- कुमार रवीन्द्र |