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शुभ दिन आया

शुभ दिन आया
और हवाओं में रँग बिखरे
शोख-सजीले कैसे क्वाँरे

आओ, सजनी, देखें चलकर
इन्द्रधनुष निकला है छत पर

शुभ दिन आया
रात हुई बरखा में भीगे
फूल लग रहे कितने प्यारे

ऋतु-नहाई है धूप लॉन पर
चम्पा से है ओस रही झर

शुभ दिन आया
बाँचें हम भी, रंगपर्व के
भीतर जो इतिहास हमारे

पत्तों पर गुलाल बिखराकर
सुबह लिख रही ढाई आखर

शुभ दिन आया
बौराई है अमराई भी
कोयल ने ऋतुमंत्र उचारे

शोर हो रहा गली में उधर
चुप क्यों रहता अपना यह घर

शुभ दिन आया
गली-गली में टेसू महका
भंग पिये निकले हुरियारे

- कुमार रवीन्द्र
१ मार्च २०१७

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