|
|
आज सब होली मनाएँ |
|
रंग बिरंगे रंगों से
उपजे प्रेम प्रसंगों से
आज हमजोली मनाएँ
मुँहजोरी, चोरी चोरी
गौरी कान्हा बरजोरी
गाल रँगरोली लगाएँ
सँग ढप चंग, पी कर भंग
झूमे टोली मस्त मलंग
करें ठिठौली हँसाएँ
विद्वेष भूल, कथनी करनी
रंग चले नहीं कतरनी
गले लगें रंग लगाएँ
नहिं रूठें, खुशियाँ लूटें
रंगों की मटकियाँ फूटें
द्वार रंगोली सजाएँ
- गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल'
१ मार्च २०१७ |
|
|
|