अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

आज सब होली मनाएँ

रंग बिरंगे रंगों से
उपजे प्रेम प्रसंगों से
आज हमजोली मनाएँ

मुँहजोरी, चोरी चोरी
गौरी कान्हा बरजोरी
गाल रँगरोली लगाएँ
सँग ढप चंग, पी कर भंग
झूमे टोली मस्त मलंग
करें ठिठौली हँसाएँ

विद्वेष भूल, कथनी करनी
रंग चले नहीं कतरनी
गले लगें रंग लगाएँ
नहिं रूठें, खुशियाँ लूटें
रंगों की मटकियाँ फूटें
द्वार रंगोली सजाएँ

- गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल'
१ मार्च २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter