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हवा फागुनी |
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हवा फागुनी हो गयी,
रंग-बिरंगी आज
लगी सुनाने कान में, कोई फगुआ साज।
ऐसा रंग उलीचिए, लगे न आँखों पास
भीतर तक मन को रँगे, हो जाए अहसास।
ढोलक बाजी गाँव में, हुए साथ सब लोग
फागें गाते मस्त हो, भूल सभी दुःख-रोग।
फगुनाहट ऐसी चढ़ी, रामलाल के अंग
चीन्हे किसको कौन क्या, दिखे रंग ही रंग।
जिनके घर ना रंग है, ना है कोई आस
उन्हें मिठाई-रंग दे, खेलें होली खास।
- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
१ मार्च २०१७ |
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