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होली का संदेश

देता है संदेस भी
होली का हुड़दंग
भेदभाव सब भूलकर
रँगे सभी इक रंग

कुदरत सज धज कर खड़ी
रंगीला संसार
लाल गुलाबी फूल ज्यों
धरती का शृंगार

खेल रहा होली गगन
देख धरा के संग

फागुन की पुरवा बही
साथ बही है प्रीत
मौसम की मनुहार पर
प्रेम गया फिर जीत

सभी नशे में धुत्त हैं
बिन मदिरा बिन भंग

धूम मचाती टोलियाँ
धरा मिठाई थाल
गरमा गरम कचौड़ियाँ
ठण्डाई तर माल

कहीं झूमता फाग है
कहीं नाचती चंग

जले होलिका पाप की
देखो अबकी बार।
नियत सार्थकता तब ही
पायेगा त्यौहार

सबके अन्तस में बहे
पुण्य भाव की गंग

- निशा कोठारी
१ मार्च २०१७

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