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छन छनन छनन

छन छनन छनन
लो बाँध हवा ने पत्तों की ली
पायलिया

इस गली चली उस गली चली
मन मौज भरे मनचली चली
महुआ पलाश से बतियाती
मस्ती की बन पोटली चली

ओढ़े अबीर पहने गुलाल
फगुआ की धुन पर नाच
रही बगिया बगिया।

इससे खटपट उससे खट पट
हर घूँघट को छेड़े नटखट
कर रही ठिठोली ढीठ अली
अब इस पनघट अब उस पनघट

ठुनकी आँखों को देख कहे
"मत मान बुरा होली है री
ओ बावरिया"

ख़ुशबू की गगरी छलकाती
हर ओर नेह रस ढलकाती
रस-रंग-गंध के ढोल बजा
हर देहरी का मन थिरकाती

होलियार हुयी निर्बंधी ने
जल-थल-नभ सबको सम्मोहन में
बाँध लिया

- सीमा अग्रवाल
१ मार्च २०१७

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