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होली रंगों की
कशिश |
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होली रंगों की कशिश, लगे शीत
की धूप
तिल तिल जाए बेरुखी, खिल खिल जाए रूप
अंजलि भरे अबीर से, गोरी का शृंगार
रंग सतरंगी भर गया, अंग अंग अंगार
प्यार घुला हर रंग में, लगते फिर भी भिन्न
डुबकी इनमें मार कर, नाच धिना धिन धिन्न
उपवन करे वसंत का, सुन्दर बहुत बखान
दे्खे होली रंग जब, गुम हो रहे गुमान
होली गाए मस्त हो, चैती फाग खयाल
सिकुड़ी सजनी लाज से, फड़के दिल दे ताल
होली रंगों को मिला, मीठा बहुत स्वभाव
भेदभाव बिन कर दिया, प्रेम भरा छिटकाव
प्रेम रंग सलिला बने, बहे निरंतर धार
हर जन प्रेमासिक्त हो , जब तक है संसार
फाल्गुनी के अंग हैं, मधुर राग औ’ रंग
लेकर ऋतु की मस्तियाँ, तन मन भरे उमंग
- ओम प्रकाश नौटियाल
१ मार्च २०१७ |
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