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धूम मचाई लाजो ने

ऐसी अंग लगी फगुनाई
लाज बिसारी लाजो ने
बीच बजरिया ठुमके लटके
धूम मचाई लाजो ने

सरका घूँघट सुध बुध खोई
आज जो चख ली भाँग ज़रा
उड़-उड़ जाए धानी चुनरी
उघड़ी-उघड़ी माँग ज़रा

कल गढ़वाई कान की झुमकी
कहाँ गँवाई लाजो ने

सास ननदिया आँख तरेरें
लाँघ ड्योढ़ी पाँव धरे
बड़ी बहुरिया हुई बाँवरी
बात सुने ना ध्यान करे

बीच बरेली बरसाने की
रास रचाई लाजो ने

दूर देस से लौटा पाहुन
अंग अंग में रंग गुलाल
दीपक साखी बचन निभाया
भूल गई सब पीर- मलाल

नैन सकोरे उमड़ी बदली
झरी लगाई लाजो ने

- शशि पाधा
१ मार्च २०१७

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