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होली का हुड़दंग

फागुन आया गाँव में
होकर मस्त दबंग
श्रीगणेश लो हो गया
होली का हुड़दंग

शिवजी के बाराती, जैसे
मुस्टंडों की सेना
छैल-छबीले दीवानों का
बहुरूपिये सा होना

झूमे मन मस्त मतंग
होली का हुड़दंग

स्वाँग रचाते लोग नाचते
बजते कड़क नगाड़े
कालिख-पुते हुए चेहरों को
देख रहे मुँह फाड़े

हथकंडे सारे अपनाकर
करते सबको दंग

माथे पर टीका अबीर का
और गुलाल गालों पर
'होली है' का शोर गूँजता
मतवाली चालों पर

रंग के ऊपर रंग लगाने
छिड़ी हुई है जंग

रंगों की बौछारों से जब
भीगे मन का कोना
बैर भूलकर गले मिले
तो उत्सव लगे सलोना

ढोल-मजीरे की धुन
सुनकर हुईं दिशाएँ दंग

- श्रीधर आचार्य शील
१ मार्च २०१७

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