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गीच रच दिये हैं

मौसम के द्वारे फागुन ने
गीत रच दिये हैं
प्यारी सी चिट्ठी भेजी है
शब्द, लिख दिये हैं

रंग अबीर गुलाल मला है
कोमल गालों पर
मुग्ध मगन हो आज देवरा
रीझे भाभी पर
सुखद मनोहर पल देवर के
नाम कर दिये हैं

जीजा जी ने चुनरी लाकर
साली को दी है
साली ने भी पहन ओढ़नी
खेली होली है
जीजा जी ने नयनों के सब
भाव पढ़ दिये हैं

रितु बौराई मुग्ध हुआ मन
मिलने को व्याकुल
संग सहेली रीझ रही है
परदेसी आकुल
प्रेम सिक्त हो, भाषाओं के
काव्य गढ़ दिये हैं

बैठ दुआरे नयन ताकते
मिलने की घड़ियाँ
अठखेली करते दो नैना
भूले चौकड़ियाँ
अंदर बाहर मधुर प्रणय है
नेह भर दिये हैं

- आभा सक्सेना
१ मार्च २०१७

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