|
|
रंगों की बरखा
हुई |
|
रंगों की बरखा हुई, आँधी उड़े
अबीर
फागुन में सब मस्त हैं, साधू, संत, फकीर
रंग बसंती रंग में, मनवा हुआ विभोर
मादकता ले उड़ चली, हवा बही चहुँ ओर
गोरी पर भी चढ़ गया, ऋतु बसंत का रंग
मद मस्ती में डूब कर, चहके सजना संग
फागुन मासे खिल गये, टेसू और पलाश
गदराया यौवन कहे, पिया मिलन की आस
ओढ़े पीली चूनरी, सरसों भी इतराय
झूमें गेहूँ बालियाँ, शोभा कही न जाय
कुहुक रही है कोकिला, सबको करे विभोर
मंजरियाँ फैला रहीं, खुशबू चारों ओर
ढोल मंजीरा बज रहा, और बजे करतार
मांदल वाली थाप पर, थिरक रहे नर-नार
भर पिचकारी रंग की, खेलत हैं गिरधारि
अंग-अंग राधा भिंजे, भींजत ब्रज की नारि
- मणि बेन द्विवेदी
१ मार्च २०१७ |
|
|
|