अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

रंगों की कर बात

भोर हुई त्यौहार की, रंगों की कर बात!
दूर करो शिकवे गिले, करो नयी शुरूआत!!

घूँघट काढ़े द्वार पर, खड़ी नवेली नार!
रंग बिरंगी पड़ रही, पिचकारी की धार!!

होली के संग संग जले, झूठ कपट की बात!
खुशी बिखरती हर तरफ, जिया सत्य का गात!!

बैठे हँस हँस कर करें, जीजा साली बात।
बहन बीच लेकर खड़ी, गुझियों भरी परात!!

चढी जवानी रंग को, सूखा सुर्ख गुलाल!
मल मल कर हर गाल को, पल में कर दे लाल!!

भंग चढ़ा कर गा रहे, अपने अपने राग!
बहक-बहक आवाज में, जैसे गाये काग!!

ढोल ढमाढम बाजते, भंग चढ़ाये रंग!
झूम-झूम कर नाचता, प्यारा प्रिय का संग !!

- त्रिलोचना
१ मार्च २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter