अनुभूति में
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१५ मई
पिता की तस्वीर -
डाक
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टेलिफोन
कई दिन कि याद नहीं कितने बीते
यही सोचते बीते कई दिन तुम्हें याद करते
मैंने तुम्हें पुकारा
पर सिर्फ अंधेरे ने ही सुना तब रात थी
मैंने तुम्हें पुकारा पर सिर्फ छायाओं ने ही सुना
तब दोपहर थी
हर दिन तुम्हें लिखा एक संदेश
हर दिन मैंने लिखा तुम्हारा संदेश अपने लिए
पुल से फेंकता मैं उसे नदी की हरी धारा में
एक दिन वह बादल बनेगा
और बरसेगा
उम्मीद है यह नहीं हमारी मुलाकात अंतिम
कुछ देर और कर लूँ इंतज़ार
कहीं गलत ना लिख दिया हो डायरी में समय,
जगह गलत हो
क्या तुम सड़क के उस पार हो
हैलो तुम्हारी आवाज सुनाई नहीं देती
क्या तुम मुझे सुन सकती हो
१ अप्रैल २००६ |