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पतझर एक मौसम
तुम्हारे लिए
कई दिनों में पूरब के ढलते
क्षितिज में प्रकट होता
चाँद आधा अधूरा पतझर का,
फिर वहीं आस पास निकल आता मंगल भी
टिमटिमाता लाल रात के अंधकार में।
दूर को देखते समय छूटता यहाँ
खिड़की से वहाँ अदृश्य तक
खोजते कोई पहचान
जब सब कुछ अनजान
सब कुछ जानते हुए भी!
कहां चले गए चाँद तुम पेड़ों के पीछे जा छुपे,
मैं सोचने जो लगा कुछ कि
तुम ऊब ही गए
संभाल कर रखा है मैंने एक मौसम तुम्हारे लिए
गिन कर रखे हैं डायरी में कुछ दिन साथ बिताने
कि सुना दो अपनी बात पूरी,
इस बार जाने से पहले
यह पतझर तुम्हारे लिए!
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