चार छोटी कविताएँ
अतिरिक्त
यह जनम किसका कि सुबह हुई
दोपहर और शाम हुई
उसने बताया तुम्हारी उम्र इतनी हुई,
कितनी
कितनी
समा गई एक ही शब्द मे
पूछते मैं दौड़ता रहा उसके पीछे
उठाए एक रिक्त स्थान को-`
पर उसे कहाँ रखूँ
इस प्रश्नपत्र में
स्मृति चिह्न
रह जाती उसकी याद यात्रा से लौट कर
छूटा जो पीछे कहीं दूर,
साथ न होते हुए भी जो साथ अब
जो नहीं दिखता
नहीं सुन पड़ता
छू नहीं सकता जिसे पर
यह होना उसका न होकर भी यहाँ
सुबह
बोलती चिड़िया बोलती
बंद कर सोचना
शुरू कर कुछ करना
सोने दे सपने को
जगा अपने मन को,
बोलती चिड़िया कुछ
और मैं सोचता उसको
ईंधन
वह जून का लंबा एक दिन था थका हुआ
सरकता हुआ
मेरी धमनियों में,
मैंने घड़ी को देखना बंद कर दिया
उसमें मेरे लिए समय नहीं
कोई सस्ता सा समय-`
एक पल में पूरे जीवन की स्मृति कौंध गई मन में,
बीते उस दिन अमलतास नीचे बिखरी छाया को
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