अनुभूति में
मोहन राणा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अर्थ शब्दों में नहीं तुम्हारे भीतर है
कोई बात
डरौआ
पतझर में
पानी का चेहरा
क्षणिकाओं में—
पाँच क्षणिकाएँकविताओं में—
अपनी कही बात
अपने आप
अस्तव्यस्त में
आरी की कीमत
एक गरम दिन की स्मृति
किताब का दिन
कुआँ
कुछ कहना
कुछ भी
चार छोटी कविताएँ
चिड़िया
चिमनी
चींटी तथा अन्य छोटी कविताएँ
टेलीफोन
तीसरा युद्ध
धोबी
पतझर एक मौसम तुम्हारे लिए
फिलिप्स का रेडियो
फोटोग्राफ़ में
बड़ा काम
बोध
माया
मैं
राख
सड़क का रंग
संकलनों में—
गुच्छे भर अमलतास -
ग्रीष्म
सनटैन लोशन
१५ मई
पिता की तस्वीर -
डाक
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फिलिप्स का रेडियो
उस पर विविध भारती और समाचार
सुनते
घर पुराना हो गया
उसके साथ ही ऊँची नीची आवाजें कमजोर तरंगें
उसके नॉब भी खो गये पिछली सफेदी में
धूप में गरमाये सेल रात के अंधरे में एकाएक
चुप हो जाते हैं
समाचारों के बीच-
आइंडहोवन की खुली सड़कों में तेज हवा से बचते
शहर के बीच
खड़ी विशाल फिलिप्स कॉरपोरेशन की इमारत को देखता-
जेब्राक्रॉसिंग पे खड़ा मैं सोचता-
क्या यह फिलिप्स का रेडियो है! |