अनुभूति में
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१५ मई
पिता की तस्वीर -
डाक
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अस्तव्यस्त में
इन डिब्बों में एक लंबा अंतराल
बंद है
अगर दिन की रोशनी न पहुँ ची इन तक
सोया रहेगा अतीत निश्चल पुरानों की गंध में-
मनुष्य का मुखौटा पहने चींटी
की तरह जमा करता रहा अब तक मैं दिन- रात
किसी बुरे मौसम की आशंका में
मैं समय को बचा कर रखना चाहता था सुरक्षित चीजें बटोरते हुए-
पर केवल चीजें ही बचीं साथ गत्ते के डिब्बों में
बंद कर उन्हें रखना है परछत्ती में
और भूल जाना कहीं
जगह ही नहीं बची याद रखने के लिए भी कुछ
यह सातवां घर है मेरा दस साल में
यह मेरा सातवां पता है दस साल में
मैं छोड़ आया हूँ खुद को सात बार दस साल में-
घिरे हुए आकाश में कहीं
अकेली समुद्री चिड़िया की आवाज
नए घर को जाती पुराने को लौटती
पैदल अपने पुरखों के रास्ते को नापती-
घर बदलने की थकान
ध्यान न रहा कि महीना बीत गया पूरा
जाने कब लिखी यह कविता किसी अस्त व्यस्त में !
इसे फूल की तरह सूंघो इसमें पुरानों की गंध है- |