अनुभूति में
मोहन राणा की रचनाएँ—
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पाँच क्षणिकाएँकविताओं में—
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कुछ कहना
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सड़क का रंग
संकलनों में—
गुच्छे भर अमलतास -
ग्रीष्म
सनटैन लोशन
१५ मई
पिता की तस्वीर -
डाक
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राख
शांति मार्च के बाद फिर शुरु हो
गए दंगे
बस यही खबर है
मैं क्या कर सकता था
मैं क्या कर रहा हूँ
मैं क्या करुँगा
चुप रहूँ गा
सुनता रहूँ गा
देखता रहूँ गा
चलता रहूँ गा
लगातार कभी न समाप्त होने वाली यात्रा में
बातचीत अपने आपसे
अपने अनाम-परनाम मुखौटों से
झरते हैं बाहर अमलतास के फूल
गरम हवा में कुम्हलाते-
और मैं उन्हें चुनता हूँ धूल में
राख हो चुके
थोड़ी देर में वे चल पड़ेंगे साथ धूल की आँधी के
क्या मैं जो बुरा है उसे बुरा कहूँ गा
क्या मैं लडूँगा
क्या मैं कुछ करूँगा
रोक कर पूछूँगा लौटते हत्यारे से
इस सब क्या कोई मतलब है
क्या वो मनुष्य न था जो अब नहीं लौटेगा घर अपने तुम्हारी तरह-
वह अध्यापक था
वह साईकिल पर निकला कामगार था
और यही सोचते कर लूँगा पार भारी यातायात को
मैं क्या करुँगा
तुम पूछते हो
मैं पूछता हूँ आप से
खोजूँगा लापता नामों को
या बस लिख दूँगा वक्तव्य विरोध का
मृतकों की ओर से
१६ जुलाई २००६ |