अनुभूति में
मोहन राणा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अर्थ शब्दों में नहीं तुम्हारे भीतर है
कोई बात
डरौआ
पतझर में
पानी का चेहरा
क्षणिकाओं में—
पाँच क्षणिकाएँकविताओं में—
अपनी कही बात
अपने आप
अस्तव्यस्त में
आरी की कीमत
एक गरम दिन की स्मृति
किताब का दिन
कुआँ
कुछ कहना
कुछ भी
चार छोटी कविताएँ
चिड़िया
चिमनी
चींटी तथा अन्य छोटी कविताएँ
टेलीफोन
तीसरा युद्ध
धोबी
पतझर एक मौसम तुम्हारे लिए
फिलिप्स का रेडियो
फोटोग्राफ़ में
बड़ा काम
बोध
माया
मैं
राख
सड़क का रंग
संकलनों में—
गुच्छे भर अमलतास -
ग्रीष्म
सनटैन लोशन
१५ मई
पिता की तस्वीर -
डाक
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कुआँ
कोई आवाज नहीं
कोई विचार नहीं
कोई भाव नहीं
दिन होते ही ओढ़ लेता हूँ कपड़े
क्या जीवित पुतला ही नहीं बस
अपनी छाया से भागता अकारण
पलक झपकाता
बाजुओं को हिलाता
एकाएक दौड़ने लगता जैसे याद आया कुछ
छूट गया कुछ
देर हो गई
या भूल गया कुछ ऐसे ही विचार में
कुछ बोलता
कुछ सुनता
समय के पद्चाप
धूप के लिए खोलता दरवाजा
बारिश के लिए खिड़की
रोता नहीं दुनिया में अन्याय पर
नहीं आता गुस्सा मुझे झूठ पर
वह भी तो सच है
और क्या मुखौटा ही नहीं मैं उसका-
अपने ही झूठ पर विश्वास नहीं होता मुझे
लोग उड़ेलते मेरे भीतर अपना प्रेम
भेजते संदेश गिरा देते अपनी गठरियों का बोझ
पर कुछ नहीं होता
कोई प्रतिध्वनि नहीं,
कोई प्रतिबिम्ब भी नहीं
खाली यह खालीपन ही जैसे सबकुछ
बार बार उसे ही जीते,
यह दिन फिर यह दिन किसी के लिए भविष्य
मेरे लिए बस एक और दिन
अपने आप को कुरेदता |