अनुभूति में
मोहन राणा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अर्थ शब्दों में नहीं तुम्हारे भीतर है
कोई बात
डरौआ
पतझर में
पानी का चेहरा
क्षणिकाओं में—
पाँच क्षणिकाएँकविताओं में—
अपनी कही बात
अपने आप
अस्तव्यस्त में
आरी की कीमत
एक गरम दिन की स्मृति
किताब का दिन
कुआँ
कुछ कहना
कुछ भी
चार छोटी कविताएँ
चिड़िया
चिमनी
चींटी तथा अन्य छोटी कविताएँ
टेलीफोन
तीसरा युद्ध
धोबी
पतझर एक मौसम तुम्हारे लिए
फिलिप्स का रेडियो
फोटोग्राफ़ में
बड़ा काम
बोध
माया
मैं
राख
सड़क का रंग
संकलनों में—
गुच्छे भर अमलतास -
ग्रीष्म
सनटैन लोशन
१५ मई
पिता की तस्वीर -
डाक
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बोध
पेड़ भागते हैं कुछ देर साथ
फिर खंबे साथ हो लेते हैं
पहाड़ दूर ही रहते हैं उदासीन
ताकि बाकी दुनिया चलती रहे
ताकि मैं सोचूँ बेचैनी में कुछ दिलचस्प
उदासीन दोपहर की छायाओं में
एक उम्मीद में देखते हम बादलों की ओर
पर वे नहीं हैं कहीं आस-पास
दूर होती जा रही नदी की आवाज़ भी
धीमा होता जाता यातायात
रास्ते बंद हो रहे हैं ऋषिकेष से हरिद्वार जाते,
देखते एक दूसरे को
बिना बोलें कह देते सवाल
क्या शताब्दी समय पे जाएगी दिल्ली आज
और हँस पड़ते याद कर अपनी हालत टैक्सी में कुछ देर पहले
चल पड़ती रेलगाड़ी
छूटता कोलाहल धुँधलके में कहीं,
पूरा हुआ समय से एक द्वंद्व समय पर पहुँचने का
पर भीतर चलती रहती हैं अनिस्तर बुदबुदाहटें
कोई उपाय कोई तीसरा किनारा
जैसे कहीं ना पहुँच पाना ही गंतव्य हो यात्रा का
१६ जुलाई २००६ |