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मैं
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सड़क का रंग

संकलनों में—
गुच्छे भर अमलतास - ग्रीष्म
सनटैन लोशन
१५ मई
पिता की तस्वीर - डाक

  सड़क का रंग

अंत में केवल हम दो ही बचे थे
जैसे दो दिन
अगल बगल दो घर
कुछ भी हो
मैं और तुम ही बचे थे जैसे शरद की तीखी हवा में
सुर्ख होते दो पत्ते,
और कई जमीन में गिर गल भी गए हैं बहते हुए पानी में
पतझड़ के रक्त में
सड़क का रंग ही बदल चुका है

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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