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नये वर्ष में नये हर्ष में
खुशियाँ रहे अपार
फसलें हो भरपूर धरा पर
गगन पतंगों से भरपूर
गाँव गली में शोर शराबा
उड़े हवा में सुखद कपूर
फसलें भी अंगड़ाई लें और
भँवरें भी तैयार
नये वर्ष में नये हर्ष में
खुशियाँ रहे अपार
त्योहारों के इस मौसम में
गाँव निहारे सबकी राह
माँ बाबू जी बहना देखे
कब आएँगे जिनकी चाह
अभिनंदन स्वागत में डोले
मन की हर झंकार
नये वर्ष में नये हर्ष में
खुशियाँ रहे अपार
- संतोष कुमार |
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बीत रहे इस नये साल में
गिनती आगे बढ़ती जाती
स्वाँस की थाती घटती जाती
अपने पीछे छूट गये हैं
मुद्राओं में झूठ नये हैं
बेबस, भूख, कर्ज में डूबी
जीवन तार टूटती जाती
बीत गये हर नये साल में
गिनती आगे बढ़ती जाती
हम सच्चे बाकी सब झूठे
जाति, धर्म नहीं हैं छूटे
नीति, अनीति घालमेल हो
जीवन धार सूखती जाती ।
नये साल में अनहोनी की
गिनती आगे बढ़ती जाती
सुख के सपने खुला समंदर
अच्छे दिन या निरा बवंडर
कर्म वीर बन आगे बढ़ते
नहीं सुनेंगे ठकुर सुहाती ।
गिनती आगे बढ़ती जाती- सुरेश कुमार पांडा |
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आस का दीपक जलाए साल ये
द्वार
देहरी मुस्कुराये साल ये
यों
मुआफ़िक
दिल के
हों
मौसम
सभी
फस्ल खुशियों की उगाये साल ये
दे गया है ज़ख्म बीता साल जो
भरने के आसार लाये साल ये
अर्श पर लिक्खें इबारत प्यार की
प्यार का खत बन के आये साल ये
ख्वाहिशों की सूरतें भी हैं उदास
मुस्कुराहट बन के छाये साल ये
जो तसव्वुर खूबसूरत हों, उन्हें
इक हक़ीक़त भी बनाये साल ये
दफ्न है चाहत गरीबी की जहाँ
जान उसमें फूँक जाये साल ये
दो निवालों के लिए गिरवी है जो
लाज उस माँ की बचाए साल ये
ज़िक्र कोई भी अमावस का न हो
गीत 'पूनम' के ही गाये साल ये
- पूनम शुक्ला |
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नया साल आया
पर समय वही।
सर्द-सर्द रातें
गलन-भरे दिन
मौसम की घातें
बेबस पल-छिन
कर्मों पर भारी
भाग्य की बही।
फटी रजाई है
फटा सलूका
चीथड़े लपेटे
बने बिजूका
साहब के लेखे
सभी कुछ सही।
ऊनी में जकड़े
आये प्रधान
बँटने को उतरन
दौड़ते श्वान
घर के कौड़े में
आग हँस रही।
- राजेन्द्र वर्मा |