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छू सकता था,
लेकिन छुआ नहीं कि-
राख बनकर
कहीं कोई सो रहा है
सुन सकता था,
लेकिन सुना नहीं कि-
कहीं कोई
ज़ोर-ज़ोर रो रहा है
निहार सकता था,
निहारा लेकिन नहीं कि-
दरिया में
कोई पुरानी घाव धो रहा है
सूँघ सकता था,
रुचा नहीं लेकिन कि
काँटो के संग
कोई महक बो रहा है
कर सकता था
बहुत कुछ
लेकिन
कुछ किया कहाँ
बीता पूरा वर्ष,
रत्ती भर जिया मैं कहाँ ?
- जयप्रकाश मानस
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बदलने पड़े
खूँटी पर टँगे कुछ कैलेंडर
विगत वर्ष फिर न आएगा
भूत के आमाशय में समा जो गया
जो बोया है वही ये नया वर्ष लौटाएगा
समय की माप नहीं
हर क्षण-हर वस्तु, व्यक्ति
नित नवीन, कुछ भी नहीं प्राचीन
चेतना हर कण की ले रही विस्तार
हर पल नया ही है
हम विगत वर्षों की भूलों से
नई कुछ सीख लें
करें आरम्भ ऐसे कि
नहीं फिर अंत हो
नव वर्ष का
हर पल रहे उत्साह में, उल्लास में
उत्सव भरा अंतरजगत हो
तेजमय, ज्ञानमय, निर्वाणमय
गतिमान हों सोई हुईं शुभ शक्तियाँ
अपना दीपक खुद बनें
खुद जलें, फिर चलें
हर एक पल-क्षण
नित नया और
वर्ष भर नव वर्ष हो
- उमेश मौर्य |