111
|
लेकर फिर से आ गया, आशाओं के थाल।
स्वप्नों को पर दे रहा, आज ये नया साल।
आज ये नया साल, कहे, बढ़ चलिये आगे
बाधाएँ कर पार, बने हैं सभी सुभागे।
सद्कर्मों की थाति, जगत को जाओ देकर
आया नूतन साल, बड़ी आशाएँ लेकर।
1
पथ के कंटक भूल कर, बढते जाओ मीत।
आने वाला हर दिवस, दे जाएगा जीत।
दे जाएगा जीत, काल की बोली कहती
प्रतिपल दे संकेत, हमें चेताती रहती।
मिले नहीं नवनीत, 'रीत' पानी को मथ के
करते रहना कर्म, भूलकर कंटक पथ के।
1
कोई दुखिया भी न हो, बरसे हर पल हर्ष।
खुशियों की फसलें उगें, ऐसा हो नव वर्ष।
ऐसा हो नव वर्ष, मिटे भय, विपदा, पीड़ा
घर हो या कि समाज, सुखों की नित हो क्रीड़ा।
गाँव, गली, घर, देश, सभी बन जायें सुखिया
ऐसा हो यह वर्ष, नहीं हो कोई दुखिया।
1
अपने कदमों को तनिक, उधर दीजिये फेर।
जहाँ खेत खलिहान औ, दीन, भीलनी, बेर।
दीन, भीलनी, बेर, देखते राह तुम्हारी।
आना हे नव वर्ष, कुटी इस बार हमारी।
लेकर आना साथ, 'रीत' कुछ नन्हें सपने
रोटी थामे हाथ, थाल में चंदा अपने।
1
- परमजीत कौर 'रीत' |