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उतरेगा नव वर्ष जब
सब होंगे खुशहाल ।
क्या होगा यह स्वप्न सच
मन कर रहा सवाल ।।
नया वर्ष देगा नया
भारत को आयाम ।
रोटी सबको पेटभर,
और सभी को काम ।।
बनें नहीं इस वर्ष शिशु,
घोर काल का ग्रास ।
उन्हें न अब सहना पड़े,
दुःख प्रदूषण त्रास ।।
नए वर्ष का दिन प्रथम,
भरता मन में हर्ष ।
और अंत का आकलन,
आँसू है निष्कर्ष ।।
आयेंगी फिर गर्मियाँ,
फिर होगी बरसात ।
नए वर्ष फिर चाँदनी,
चमका देगी रात ।।
अब भी मन में जोश है,
अब भी मन में चाह ।
नया वर्ष सच की हमें,
दिखलाएगा राह ।।
- अशोक कुमार रक्ताले |
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नये कैलेण्डर पर तारीखें
वही पुराने साल की
अपनी-अपनी चाल की
पहले दिनांक पर
धूप चढ़ी है
ठंडी नहीं पड़ी है
किन्तु शाम को
जल्दी जाने की
जल्दी बहुत पड़ी है
घूम रहीं
अनमन सी भेड़ें
ओढ़ रजाई बाल की
कोहरे में छिप
आँख चुराता
एक तमाशा अचरज का
सिकुड़ी हुईं
दुपहरी पूछे
आज पता फिर सूरज का
उधर निकलती
जनपथ पर है
राजा जी की पालकी
- ब्रजनाथ श्रीवास्तव |