उत्सव नव वर्ष का
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२६. १२. २०१५

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    साल पुराना

 कोई कोशिश

 

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बीत रहा है साल पुराना
मेरी माँ की आँखें नम हैं!

आँख-मिचौनी से मौसम ने
फ़सल लील डाली है अबकी-
भूखे पेट कभी दो रोटी
जाने क्या मर्ज़ी है रब की!

अपने बच्चों के बस्तों से
कापी और किताबें कम हैं!

साल नया है हाल पुराना
बाबूजी हरदम कहते हैं-
अक्सर उन्हें चिढ़ाती दौलत
खुले गगन में जो रहते हैं।

बाहर नहीं निकलते दद्दू
सर्दी बहुत जुराबें कम हैं

लिए वोडका नये साल में
अपनी-अपनी बाँच रहे हैं-
ये कर डाला, वो कर डाला
डीजे धुन में नाच रहे हैं।

थर-थर कलुआ काँप रहा है
दुश्मन से क्या रातें कम हैं?

- डॉ. शैलेश गुप्त वीर 
  कोई कोशिश बढ़ जाने की
रुकी नहीं है
इच्छा चाहे लसर गयी हो
झुकी नहीं है

नये साल का सूरज आया
फिर कुछ कहता सुनना है क्या?
कौन भरोसा करे कहे का
उलझा मतलब, बुनना है क्या?

हरकत जड़वत हुई भले पर
चुकी नहीं है।

हमने अकसर खूब सुना है
मन के मारे मार कहाता
होनी-करनी हरदम अपनी
दूर रहा हर बार विधाता

पिट-पिट पग-पग सीख मिली
बेतुकी नहीं है।

चाहा, देखूँ मसें खेत की
पाला-मारे दाग़ बने थे
वही हवा अब तिरछे छूती
जिससे कितने राग बने थे

आग ओटती, किन्तु, हथेली
धुकी नहीं है।

- सौरभ पाण्डेय
उत्सव नव वर्ष का



गीतों में-

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अश्विनीकुमार विष्णु

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आकुल

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उमाप्रसाद लोधी

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डॉ. प्रदीप शुक्ल

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पद्मा मिश्रा

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प्रणव भारती

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शैलेश वीर

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सौरभ पाण्डेय

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दोहों में-

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ज्योतिर्मयी पंत

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रघुविन्द्र यादव

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अंजुमन में-

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कल्पना रामानी

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सुरेन्द्रपाल वैद्य

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छंदमुक्त में-

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अमृता प्रीतम

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उमेश मौर्य

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जयप्रकाश मानस

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

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