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दुनिया से आतंक का, हो जाये अवसान ।
प्रेम और सद्भाव से, रहें सभी इनसान।।
नये साल में राम जी, ऐसा दो विश्वास ।
भूखे को रोटी मिले, बेघर को आवास ।।
छोड़ अलस को देखिये, आज क्षितिज की ओर।
नव-उमंग उत्साह ले, आया है नव- भोर ।।
पूँजी सारी चढ़ गयी, महँगाई की भेंट ।
हैं स्वागत नव-वर्ष अब, तेरा भूखे पेट ।।
वही गरीबी भूख हैं, वो ही अत्याचार ।
ऐसे में नव-वर्ष का, हो कैसे सत्कार ।।
साल नये आये गये, रही पुरानी बात ।
रोटी के सपने तले, कटी पौष की रात ।।
परिवर्तन का रच रहे, लोग व्यर्थ ही स्वांग ।
बदला तो कुछ भी नहीं, बदला बस पंचांग।।
सबके हाथों काम हों, सबके मुख पर हर्ष ।
अभिनंदन तेरा करूँ, फिर मैं नूतन-वर्ष ।।
हैं दिन सारे एक से, नित्य मनायें पर्व ।
नया पुराना कुछ नहीं, हर पल नूतन वर्ष ।।
- टीकमचन्द ढोडरिया |