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खड़ा द्वार पर
नया साल है
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भानु द्वार से चलीं रश्मियाँ
आशाओं के थाल सजाये
परस गुनगुनी और मखमली
जैसे सुमन भाल सहलाए
अमल व्योम पर देख कौमुदी
खिली कुमुदिनी
भरा ताल है
1
पुष्प सुरभि की वल्गा थामे
घूमें श्वासों की वीथी में
सत्य दीप लौ मन में ऐसे
जैसे हो मुक्ता सीपी में
लहरे ऐसे कीर्ति पताका
ज्यों फैलाये पर
मराल है
1
सद्भावों के अंकुर फूटें
स्वस्ति रचित हो सभी दिशाएँ
पढ़ें प्रेम के अध्यायों को
कटुता को मन से बिसराएँहरदम नाचे स्मित अधर पर
कभी न मन सोचे
मलाल है
1
नहीं संक्रमित रिश्ते होंवें
और खटास न घर कर पाये
लोचन लिप्सा वशीभूत हो
मृषा नहीं मण्डित हो जाये
स्वर्णिम आभा लेकर आया
नव विहान का
भानु बाल है
1
- अनिल कुमार मिश्र |
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दूब की नोक पर
ओस की बूँद से
इक सुनहरी किरण ने
विहँस कर कहा
वर्ष आया नया
वर्ष आया नया
काल के सिंधु में
कोई जीवन-तरी
थी सघन तम में
डूबी हुई शर्वरी
रथ दिवाकर का निकला
उधर से तभी
मृदु तरंगों ने जैसे
हुलस कर कहा
वर्ष आया नया
वर्ष आया नया
एक संवाद सा है
छिड़ा सृष्टि में
गान कलरव का
है जैसे सम्पुष्टि में
एक मीठी महक से
नहाई घरा
वृक्ष ने पक्षियों से
परस्पर कहा
वर्ष आया नया
वर्ष आया नया
क्या पवन ने लता से
कहा कान में
झूमती है वो तब से
मधुर तान में
इक कुमुदिनी के
किंचित खुले अंक को
एक चंचल भ्रमर ने
परस कर कहा
वर्ष आया नया
वर्ष आया नया
- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित' |