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नया साल जब आएगा
सोचो, क्या-क्या लाएगा?
चाहे हों वट-वृक्ष पुराने
या फिर पौधे नए-नए
जो भी रस्ते में आएँगे
सब के सब कट जाएँगे!
कौन, कहाँ पर, किसकी ख़ातिर
पौधा रोज़ लगाएगा?
ऑड मिलें या ईवनवाले
वाहन होंगे नए-नए
फ़ोरलेन पर जाएँगे
धुआँ उड़ाते आएँगे!
कौन, जहाँ पर, धुएँ से रहित
गाड़ी रोज़ चलाएगा?
नई पार्टी, नई पिकनिकें
सैर-सपाटे नए-नए
हर दिन मौज़ मनाएँगे
पॉलीथीन उड़ाएँगे!
कौन, यहाँ पर, कपड़ेवाला
थैला रोज़ बनाएगा?
मंदिर-मस्जिद, सब गुरुद्वारे
कैसेट लाकर नए-नए
लाउड-लाउड गाएँगे,
कान्हा तुम्हें रिझाएँगे!
कौन, वहाँ पर, अंतर्मन से
बंसी रोज़ बजाएगा?
- रावेंद्रकुमार रवि |
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नफरतों के श्यामपट पर
श्वेत रेखा खींचने का
कुछ करें
अभ्यास।
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रंग बिखरा दें रँगोली
से भरे आकाश हों
नेह की मदिरा बहा दें
ख़त्म सारे 'काश' हों
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आदि से उस लक्ष्य तक की
वीथिका के वृत्त को
जोड़ता श्रम स्वेद कण का
अब बने
हम व्यास।
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अनमने बीमार तन से कुछ
संभलता ही नहीं
बिन ठने जिद के कभी कुछ
भी बदलता ही नहीं
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रूढ़ियाँ बनते रिवाजों की
घुटी सी साँस में
चलो भरते हैं
नवल उच्छ्वास।
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- सीमा अग्रवाल |