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नये साल में दुनिया चमके
चमके घर–दालान
आओ हम मिल बैठ बनायें
कोई ऐसा प्लान
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अपना झंडा अपना बैनर
थामे रहें भले
अपने पूर्वाग्रह छोडें हम
सच की ओर चलें
दुनिया में जीना हो पाये
और अधिक आसान।
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अनायास ही निर्दोषों की
गर्दन काटे से
यह संसार बनेगा अच्छा
नफ़रत बाँटे से?
बच्चे हैं वो, समझ रहे हैं
जो खुद को संज्ञान।
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बाढ़ कहीं पर आई और
कहीं पर पड़ा अकाल
गये साल ने मँहगी कर दी
सबकी रोटी–दाल
नये साल के झोले में
देखें है क्या सामान।
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प्यार बढ़े दुनिया में
सबके दिल के खुलें किवाड़
आँखों के सपनों में जागे
ध्वंस नहीं, निर्माण
अब तकलीफ़ नहीं, चेहरों को
बाँटें बस मुस्कान।
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– रविशंकर मिश्र “रवि” |
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वही पुराना छपका अब तक
और वही पगही
नये साल में भी तो होंगे
गाड़ीवान वही।
भरोसे सबकी बाँचें बही
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मँहगाई के हैं पौ बारे
कारिंदे उगलें अंगारे
गली गली सौदागर घूमें
बेचें बस मक्कारी नारे
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राजा जी अब मौनव्रती हैं-
मुँह पर जमा दही
भरोसे सबकी बाँचें बही
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चुन्नू मुन्नू की भी नानी
अबकी जीत गयी परधानी
नाना की तूती बोलेगी
महल बनेगा, छप्पर-छानी
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अपनी वही बुतात-
कभी क्या उल्टी गंगा बही।
भरोसे सबकी बाँचें बही
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सदन हुये बाज़ार सरीखे
अपने ही कर्मों के लेखे
मन की बात, सुनें, समझें, फिर-
अच्छे दिन के सपने देखें
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पान पान में भेद न कोई-
क्या बंगला मगही।
भरोसे सबकी बाँचें बही
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- अनिल कुमार वर्मा |