वो टहलते वक्त
वो टहलते वक्त जिस दिन ठोकरें खा
जायेगा,
देखना उस रोज़ उसको दौड़ना आ जायेगा।
हो गयी आदत निभाने की अभी से इस
कदर,
है जुदा फिर भी मिलन के गीत गाता जायेगा।
कम न थीं पहले, सफ़र में और
गाँठें बाँध लीं,
बोझ भारी हो गया मुश्किल उठाया जायेगा।
तू शराफ़त की हिमायत कर मगर ये
जान ले,
कल शरीफ़ों के मौहल्ले से निकाला जायेगा।
जो भटकता है उसे मत आदमी का नाम
दे,
आदमी होगा वही जो रास्ता पा जायेगा।
१४ दिसंबर २००९ |