हर दुख पर इतना भर
कह ले हर दुख पर इतना भर
कह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।
क्यों आफत से जी घबराए
भीगे पलक आँख भर आए
हँसने को हैं जो रोते हैं
आँसू हर गम को धोते हैं।
चल खारे पानी में बह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।
घायल है कलियों का सीना
माँग रहा है चमन पसीना
बगिया में गुल खिल जाएँगे
हमजोली फिर मिल जाएँगे।
काँटों पर चलना है पहले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।
मान ज़रा मौसम का कहना
ऐसा भी क्या भला मचलना
अब कोई मजबूरी होगी
कल हर चाहत पूरी होगी।
आज समय जो कुछ दे वह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।
ऐसे भी मौके आएँगे
जो अपने हैं ठुकराएँगे
वार करेंगे उकसाएँगे
आखिर थक कर हट जाएँगे।
थोड़ा मन मसोस कर रह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।
कहने को कुछ भी मुमकिन है
पर यथार्थ की राह कठिन है
तुझको बढ़ते ही जाना है
चट्टानों से टकराना है।
फिर सहेजना स्वप्न रुपहले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।
८ दिसंबर २००८ |