पाँच मौसमी
कुण्डलियाँ
आया सूरज आ गई
धूप सजा सतरंग,
सूनी रातों में रहे चाँद चाँदनी संग।
चाँद चाँदनी संग मिलीं लहरें सागर से,
मेघ जहाँ मुड़ गए घटा भी गईं उधर से।
वफ़ा न छोड़ी कभी सभी ने साथ निभाया,
केवल मानव ही मानव को छलता आया।
पहचानी-सी धूप थी
पहचानी-सी छाँव,
गाँव शहर देखे लगे पड़े जहाँ तक पाँव।
पड़े जहाँ तक पाँव कहीं मन ठहर न पाया,
ओझल हुए पड़ाव सफ़र में लम्बा आया।
रही समय के साथ रात-दिन खींचातानी,
खाली चलता गया नहीं मंज़िल पहचानी।
मन माने की बात
है हार समझ या जीत,
जैसे देखा जगत को वैसा हुआ प्रतीत।
वैसा हुआ प्रतीत फूल भी यहीं खिले हैं,
काँटे भी हैं यहीं चुने जो वही मिले हैं।
किस्मत या हालात न कोई दोस्त न दुश्मन,
तेरे सुख-दुख का कारण है तेरा ही मन।
कर जी भर सब का
भला सब टूटे दिल जोड़,
औरों के गम बाँट ले अपनी चिन्ता छोड़।
अपनी चिन्ता छोड़ दुखों में भी सुख पा ले,
भला बुरा जो मिले खुशी से तू अपना ले।
इस धरती को खूब सजा ये है तेरा घर,
जीना मरना यहीं जाएगा कहाँ भाग कर।
खुशबू में साँसें
रहें साँसों में मधुमास,
मौसम बीतें बीत लें बचा रहे अहसास।
बचा रहे अहसास इसी से तो जीवन है,
सच्ची है अनुभूति और सब पागलपन है।
पचपन बचपन लगे जवाँ हो जोश लहू में,
अगर साथ रह जाएँ जिये जो पल खुशबू में।
५ मई २००८ |