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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
चुप रहना हो
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
मैं चला तुम भी चलो
हाथ गैरों से मिलाया

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

  कह दो किसी और घर जाए

कह दो किसी और घर जाए
अपना मेरे पास न आए।

मैंने कब कंचन माँगा था
बस मन का मधुबन माँगा था
मौन समर्पण को ठुकराया
जिस को सच्चा साथ न भाया

चाहे जिस की साँझ सजाए
अपना मेरे पास न आए।

सोचा लेकिन समझ न आया
कितना खोया कितना पाया
चाहत की सौगात निराली
अहसानों के बदले गाली।

जो खुशियों को ग़म दे जाए
अपना मेरे पास न आए।

अमृत कह कर जहर निकाला
हँस कर जलती में घी डाला
और लगी में खूब लगाई
भली प्रीत की रीत निभाई।

घाव दिए जो सूख न पाए
अपना मेरे पास न आए।

औरों पर मधुरस छलकाया
नहीं घूँट भर मुझे पिलाया
रीती अरमानों की प्याली
जल अथाह पा कर भी खाली।

सागर किस की प्यास बुझाए
अपना मेरे पास न आए।

जिस के हाथों गया निचोड़ा
चुपके से उस ने मुँह मोड़ा
अपनों ने जी भर कर तोड़ा
जब जोड़ा गैरों ने जोड़ा।

इन अपनों से भले पराए
अपना मेरे पास न आए।

८ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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