| कह दो किसी और घर 
                  जाए कह दो किसी और घर जाएअपना मेरे पास न आए।
 मैंने कब कंचन माँगा थाबस मन का मधुबन माँगा था
 मौन समर्पण को ठुकराया
 जिस को सच्चा साथ न भाया
 चाहे जिस की साँझ सजाएअपना मेरे पास न आए।
 सोचा लेकिन समझ न आयाकितना खोया कितना पाया
 चाहत की सौगात निराली
 अहसानों के बदले गाली।
 जो खुशियों को ग़म दे जाएअपना मेरे पास न आए।
 अमृत कह कर जहर निकालाहँस कर जलती में घी डाला
 और लगी में खूब लगाई
 भली प्रीत की रीत निभाई।
 घाव दिए जो सूख न पाएअपना मेरे पास न आए।
 औरों पर मधुरस छलकायानहीं घूँट भर मुझे पिलाया
 रीती अरमानों की प्याली
 जल अथाह पा कर भी खाली।
 सागर किस की प्यास बुझाएअपना मेरे पास न आए।
 जिस के हाथों गया निचोड़ाचुपके से उस ने मुँह मोड़ा
 अपनों ने जी भर कर तोड़ा
 जब जोड़ा गैरों ने जोड़ा।
 इन अपनों से भले पराएअपना मेरे पास न आए।
 ८ दिसंबर २००८ |