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जो वफा से
जो वफा से प्यार से भरपूर लगता था,
दूसरों के पास खुद से दूर लगता था।
वो कि जिसकी अक्ल का रुतबा जमाने में,
जाहिलों के सामने मजबूर लगता था।
मार खाना, हार जाना और चुप रहना,
इस अभागे दौर का दस्तूर लगता था।
रात-दिन बन्दूक वाले साथ रहते हैं,
आदतों से आदमी मगरूर लगता था।
लोग फोड़ा ही जिसे कहते रहे कल तक,
फूटने के बाद वो नासूर लगता था।
१४ मई २०१२
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