दिल को बहला जाती
थी जो दिल को बहला जाती
थी वो मीठी तकरार कहाँ है
कोई हम से पूछ रहा है पहले जैसा प्यार कहाँ है.
पंख नहीं फिर भी धरती से पैर नहीं लगते हैं जिसके
उसके पैरों तक जा पायें पैरों की रफ़्तार कहाँ है.
अपने शहरों तक गांवों की कोई बात नहीं आती है
सावन को कैसे समझाएं उसका मेघ-मल्हार कहाँ है.
कल को आपस में मिलजुल कर सब अपने बेगाने उसके
छुटकारे का जश्न मनाएं ऐसा भी बीमार कहाँ है.
वो दिन कब के बीत चुके जब ना के पीछे हाँ होती थी
इकरारों की खुशबू लाये अब ऐसा इनकार कहाँ है.
२४ मई २०१०
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