पतझड़ को न देना तूल
जोड़ ले जो वक्त ने दो ग़म दिए।
ये अँधेरे हैं उजालों के लिए।
आस हो या प्यास अपने साथ ले,
आदमी वो क्या कि जो तनहा जिए।
उम्र भर सब से शिकायत ही रही,
अब गुज़ारा कर बिना शिकवा किए।
मस्त आँखों से छलकते जाम पी,
बैठ कर आँसू पिए तो क्या पिए।
आँधियों का रुख बदलने दे ज़रा,
खुद हवा आ कर जलाएगी दिये।
१ जुलाई २००७ |