कैद हैं साँसें
कैद हैं साँसें कड़े पहरे हवा पर
हैं
आदमी बिल में घुसा है साँप बाहर हैं.
है सफ़र तनहा वफ़ा के राहगीरों का
साथ में गुमनामियों की स्याह चादर हैं
नस्ल से या नाम से अब कुछ नहीं होता
भेड़ियों के पास कितने शेर चाकर हैं
हर किसी को एक रखवाला जरुरी है
क्या हुआ जो फूल काँटों पर निछावर हैं.
दूसरों की आग दामन जल गया मेरा
नेकियों के ये नतीजे कुल मिला कर हैं
२४ मई २०१०
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