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छत मैं तुम आँगन
छत मैं, तुम आँगन बन जाना तुम घर
से हो तुम से घर है
जीने का साधन बन जाना तुम घर से हो तुम से घर है.
गरमी-सर्दी साँझ-दुपहरी आते रहते हैं आयेंगे
हर मौसम सावन बन जाना तुम घर से हो तुम से घर है
रह कर साथ, उलझते-चुभते किस्मत के कंकड़-काँटों में
फूलों का दामन बन जाना तुम घर से हो तुम से घर है
पहली बार किसी अपने की बरसों से प्यासी नज़रों का
पहला अपनापन बन जाना तुम घर से हो तुम से घर है
खट्टा-मीठा जैसा भी हो आपस के इस दधि मंथन में
छाछ कभी माखन बन जाना तुम घर से हो तुम से घर है
२४ मई २०१०
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