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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
उनके हुक्क भरते रहना
गम से फेरे सात करेगी
जाकर मन की गहराई में
दूर उजाले पड़ जाते हैं
सच भी कितना सच है जानें

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
कौन जाने
चुप रहना हो
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
दवा हो या ज़हर
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
दोपहर हो कि शाम
नई रंगत
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
फिर वही किस्सा पुराना
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
मैं चला तुम भी चलो
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है
हाथ गैरों से मिलाया

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

 

उनके हुक्के भरते रहना

उनके हुक्के भरते रहना वे पाँच बरस में लौटेंगे
देखो उनसे डरते रहना वे पाँच बरस में लौटेंगे

हर वक़्त मलाई मारेंगे उनकी पाँचों अब घी में हैं
तुम घास यहीं चरते रहना वे पाँच बरस में लौटेंगे

सब ठीक करेंगे जादू की जब हाथ छड़ी लग जायेगी
तब तक जीते-मरते रहना वे पाँच बरस में लौटेंगे

कुर्सी बेजान भला कैसे समझेगी पीर पराई को
खुद अपने दुःख हरते रहना वे पाँच बरस में लौटेंगे

धरती के उन भगवानों को धरती पर लाना मुश्किल है
फिर भी कोशिश करते रहना वे पाँच बरस में लौटेंगे

२ फरवरी २०१५
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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