जाकर मन की
गहराई में
जाकर मन की गहराई में रहना तो रच-बस के रहना
दूर अकेले तन्हाई में रहना तो रच-बस के रहना
घुलना-मिलना साथ निभाना सब कहते हैं खुशबू हो तुम
आती-जाती पुरवाई में रहना तो रच-बस के रहना
होठों पर हो नाम तुम्हारा जब वो ऊपर हाथ उठाये
हर तेवर हर अँगड़ाई में रहना तो रच-बस के रहना
सदियों से चाहत के बदले पत्थर ही मिलते आये हैं
जीते जी की रुसवाई में रहना तो रच-बस के रहना
उड़ते रहना खेल नहीं है रोज हवाएँ साथ न देंगी
नील गगन सा ऊँचाई में रहना तो रच-बस के रहना
२ फरवरी २०१५
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