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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
उनके हुक्क भरते रहना
गम से फेरे सात करेगी
जाकर मन की गहराई में
दूर उजाले पड़ जाते हैं
सच भी कितना सच है जानें

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
कौन जाने
चुप रहना हो
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
दवा हो या ज़हर
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
दोपहर हो कि शाम
नई रंगत
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
फिर वही किस्सा पुराना
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
मैं चला तुम भी चलो
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है
हाथ गैरों से मिलाया

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

 

दूर उजाले पड़ जाते हैं

दूर उजाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
सूरज काले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है

दीवारों की रखवाली में चूक नहीं होती है फिर भी
घर में जाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है

रोज खरी बातें कहने को मन मचला करता है लेकिन
मुँह पर ताले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है

उड़ कर आते अंगारों से आग नहीं लगती है बाहर
अंदर छाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है

अपनों की बस्ती में होकर जब-जब खुशियाँ ले जाता हूँ
गम से पाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है

२ फरवरी २०१५

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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