दूर उजाले पड़
जाते हैं
दूर उजाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
सूरज काले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
दीवारों की रखवाली में चूक नहीं होती है फिर भी
घर में जाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
रोज खरी बातें कहने को मन मचला करता है लेकिन
मुँह पर ताले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
उड़ कर आते अंगारों से आग नहीं लगती है बाहर
अंदर छाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
अपनों की बस्ती में होकर जब-जब खुशियाँ ले जाता हूँ
गम से पाले पड़ जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है
२ फरवरी २०१५
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