अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
आइने का हर टुकड़ा
जिंदगी
जैसे हर बात पे
बर्फ के दायरे
शहर का मौसम
छंदमुक्त में—
अपनों की याद
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दर्द के पैबंद
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
पिता
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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ज़िंदगी धुंध है
ज़िंदगी धुंध है, कुहासा है
मन समंदर है, फिर भी प्यासा है
ढूँढ़ते हम किसी को भीड़ में भी
सब है यह तो महज़ दिलासा है
सुबह है कह रहे हैं सारे लोग
क्यों फिर माहौल रात का सा है
रौशनी तो शहर में काफी है
बस मेरा घर ज़रा बुझा सा है
१४ जनवरी २०१३
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