अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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विदेश में भारत
ढूँढती हूँ
अपना भारत
तीजों, त्योहारों में
क्रिसमस की हलचल में
तोहफे, उपहारों में
ढूँढती हूँ
अपना भारत
होली, दीवाली में
खोजती हूँ भूला सुर
भजन, कव्वाली में
टाँग देती हूँ
बालकनी में
रंग-बिरंगा कंदील
रख देती हूँ पूजा में
बताशे और खील
सजा देती हूँ
दरवाज़े पर
गुजराती बंदनवार
कंगारूओं के देश में
कर लेती हूँ
अपना भारत साकार
३१ जनवरी २०११
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