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अपनों की याद

कंगारूओं के देश में
मुझे याद आते है वो हाथ
जो मस्जिदों की
अजान पर जुड़ जाते हैं
और मंदिरों की घंटियों पर
दुआ माँगते हैं।

वे लोग, जो हर वक्त प्रार्थनावत हैं
बेटे की नौकरी, बेटी की शादी
माँ की बीमारी और पिता की तबियत
ठीक हो जाने की कामना में रत हैं।

मुझे याद आते हैं वे लोग
जो ढूँढते हैं उत्सव के बहाने
भागदौड़, आपाधापी और झगड़ों के बीच भी
जो ढूँढ लाते हैं तराने।

मुझे याद आते हैं वे, मेरे देश के लोग
जो कड़ी धूप में पिघलते नहीं
मूसलाधार बारिश में गलते नहीं
मुश्किलों से जो दो जून की रोटी खाते हैं
वे खुश हैं, वे फिर भी मुस्कुराते हैं।

मुझे याद आते हैं वे लोग
जो बात-बेबात पड़ोसियों के घर जाते हैं
और खुशी व दुःख में उनका हाथ बँटाते हैं।
जिन्हें दिन भर के काम के बाद भी
दोस्तों के लिए फुर्सत मिल जाती है
कंगारूओं के इस देश में
मुझे उन अपनों के याद आती है।

२८ नवंबर २०११

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