अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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पिघलता
अस्तित्व
कभी-कभी
बर्फ की मानिंद
अस्तित्व पिघलता है
फूलों पर जमी
ओस की तरह
अलस्सुबह टपकता है ।
कन्धों पर उठा लेती हूँ मैं
गुज़रे हुए वक़्त की नदी
नदी के कच्चे किनारे
और नदी के किनारे उगा हुआ
पुराना विशाल बरगद ।
प्रयास करती हूँ निरर्थक
रोकने का उस सुनामी को
जो हमारे बीच आती है ।
नदी रुकती नहीं
पर बाढ़ थम जाती है ।
और मैं खिड़की के पास खड़ी
करने लगती हूँ पीछा
रात के दामन में फैले
छोटे-छोटे सितारों का
जिसमें मौजूद है
इसका, उसका, तुम्हारा ख्याल ।
३१ जनवरी २०११
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