अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
|
|
संदूक
मैंने फिर आज
पुरानी यादों का
संदूक खोला
गुज़रे लम्हों को तोला
कुछ ढलके आँसू
जो अब भी नर्म थे
भूले बिसरे अफसाने
अब तक गर्म थे
कुछ पत्थर कुछ मोती
जो मैने बटोरे थे
बचपन की यादों के
रेशमी डोरे थे
कागज के टुकड़े थे
अनलिखी कहानी थी
हो गई फिर ताजी
पीर जो पुरानी थी
बंद संदूक में
ख्वाहिश की कतरन थीं
तबले की थापें थीं
टुकड़े थे, परन थीं
देखा सराहा
कुछ आँसू बहाए
बंद संदूक में
फिर सब छिपाए
१ मई २००६
|