अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
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दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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कंगारुओं के देश से
काश मेरा आकाश
कुछ और फैल जाता
काश मेरी हवा
कुछ और दूर जाती
और छूकर आती
उन लोगों को
जो वर्षा में
बाढ़ से ग्रसित हैं
और गर्मी में
सूखे से पीड़ित हैं
जो भीख माँगने को
लाचार हैं
हाथ पैर होते हुए
बेकार हैं
काश मेरा आकाश
कुछ और फैल जाता
काश मेरी हवा
कुछ और दूर जाती
और छूकर आती
उन्हें.
जो व्यवस्था के
शिकार हैं
उन छोटे ब्च्चों को
जो बीमार हैं
उन महिलाओं को
जो सहती तिरस्कार हैं
उन बच्चियों को
जो झेलती बलात्कार हैं
काश मेरा आकाश
कुछ और फैल जाता
काश मेरी हवा
कुछ और दूर जती
दुखी लोगों के
मन को सहलाती
बूढे. पिता को
धीरज बंधाती
अकेली माता को
हिम्मत दिलाती
नन्ही मुनिया को
प्यार से समझाती
काश मेरी दुआ
दूर मेरे लोगों तक जाती
और उन्हें छूकर आती
कंगारूओं के देश से।
१ मई २००६
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