अनुभूति में
रेखा राजवंशी की रचनाएँ —
नई रचनाओं में-
अपनों की याद
दर्द के पैबंद
पिता
माँ दो कविताएँ
वक्त के पैबंद
छंदमुक्त में—
कंगारुओं के देश से
जिंदगी छलने लगी
ढूँढ रही हूँ चंदन
दोस्ती
पिघलता अस्तित्व
बचपन के दिन
बदलाव
भाई को चिट्ठी
विदेश में भारत
सफर एक औरत का
संदूक
छोटी कविताओं
में—
संगति
कैक्टस
रोको मत
लक्ष्मी
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सफ़र एक औरत का
कंगारूओं के देश में
कभी बन जाती हूँ मैं
इन्द्रधनुष
भरती हूँ रंग
प्रेमिका की आँखों में
कभी बन जाती हूँ मैं
नन्हा शिशु
सो जाती हूँ निश्चिन्त
माता की बाँहों में
कभी बन जाती हूँ मैं
लॉलीपाप
बस जाती हूँ
बच्चे के अरमान में
कभी बन जाती हूँ मैं
तितली
थिरकती हूँ
लड़कियों की मुस्कान में
कभी बन जाती हूँ
बियर की बोतल
चली जाती हूँ
युवाओं के हाथ में
कभी बन जाती हूँ
क्रिसमस
खिलखिलाती हूँ
परिवार के साथ में
कभी बन जाती हूँ मैं
लिपस्टिक
सज जाती हूँ
प्रौढ़ा के अधरों पर
कभी बन जाती हूँ मैं
छड़ी
टँग जाती हूँ
वृद्धा की खूँटी पर
कभी मैं बन जाती हूँ
ताबूत
ले जाई जाती हूँ
अकेले, मृत वृद्ध के घर
फिर मैं बन जाती हूँ
आँसू
बहने लगती हूँ
सफ़र की समाप्ति पर
३१ जनवरी २०११
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